2014 में मोदी का चुनाव अभियान गढ़ने वाले राजेश जैन आज विरोधी क्यों हो गए हैं?

Date Posted: April 15, 2019 Last Modified: April 15, 2019

हमें हर स्रोत से यही जानकारी मिली की राजेश जैन मुंबई के लोअर परेल के अपने कार्यालय से स्वतंत्र तौर पर काम कर रहे थे और उन्होंने नरेंद्र मोदी के अभियानों में अपने पैसे लगाए थे। जून, 2011 में उन्होंने एक लेख लिखकर बताया था कि वे भाजपा के लिए ‘प्रोजेक्ट 275 फॉर 2014’ चला रहे हैं। भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनावों में 282 सीटें मिलीं। 

यही राजेश जैन नरेंद्र मोदी सरकार के कामकाज को लेकर अब उतने उत्साहित नहीं दिखते हैं। आजकल वे ‘धन वापसी’ के नाम से एक अभियान चला रहे हैं। इसके तहत सरकारी एजेंसियों, रक्षा प्रतिष्ठानों और सार्वजनिक उद्यमों के पास पड़ी अतिरिक्त जमीन का इस्तेमाल गरीबों के कल्याण के लिए करने की योजना है। जैन के शब्दों में यह अभियान हर भारतीय को अमीर और आज़ाद बनाने के लिए है।

हाल के एक वीडियो में राजेश जैन यह कहते हुए दिखे, ‘2014 चुनावों के लिए मैंने तीन साल और अपने पैसे खर्च करके 100 लोगों की टीम बनाई। मुझे लगता था कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार कांग्रेस के समृद्धि विरोधी कार्यक्रमों का अंत करके भारत को एक नई दिशा देगी। लेकिन चार सालों में नीतियों में कोई बदलाव नहीं हुआ। भारत को गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से हमेशा के लिए मुक्ति पा लेनी चाहिए। मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने भी वही पुरानी नाकाम नीतियों का पालन करके कर और खर्च बढ़ाया। सत्ताधारी बदला लेकिन परिणाम नहीं।’

जब हमने 51 साल के जैन से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने बातचीत से इनकार कर दिया। अक्टूबर 2017 तक वे भारत सरकार की दो सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों एनटीपीसी और यूआईडीएआई के निदेशक मंडल में थे। 

भाजपा में 2007 में आईटी प्रकोष्ठ शुरू करने वाले 44 साल के प्रोद्युत बोरा का भी भाजपा से मोहभंग हो गया है। फरवरी, 2015 में उन्होंने मोदी और अमित शाह की व्यक्ति केंद्रीत निर्णय लेने की प्रक्रिया की आलोचना करते हुए पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने कहा था कि इससे सरकार और पार्टी की लोकतांत्रिक परंपराएं कमजोर होती हैं।

बोरा कहते हैं कि उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल होने वाले भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के कुछ शुरुआती लोगों में वे थे। 2007 में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की सहमति से बोरा ने भाजपा में आईटी प्रकोष्ठ शुरू किया ताकि पार्टी के नेता आपस में और अपने समर्थकों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद रख सकें। वे कहते हैं कि इस प्रकोष्ठ का गठन व्हाट्सएप और सोशल मीडिया जैसे माध्यमों का दुरुपयोग करके लोगों को गाली देने के लिए नहीं किया गया था। वे कहते हैं कि भाजपा का पागलपन इतना बढ़ गया है कि पार्टी किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना चाहती है और इससे भाजपा के बुनियादी मूल्य छिन्न-भिन्न हो गए हैं। बोरा अभी एयर प्यूरिफायर बनाने वाली एक कंपनी चलाते हैं और अपने गृह राज्य की एक स्वतंत्र राजनीतिक दल के साथ जुड़े हुए हैं।

वे कहते हैं, ‘भाजपा में सच को तोड़ने-मरोड़ने का काम 2014 में शुरू हुआ। गलत सूचनाएं और फर्जी खबरें भेजी जाने लगीं। भाजपा नेताओं ने यह काम आउटसोर्स कर दिया ताकि कहीं से डिजिटल जगत में उनकी भूमिका नहीं सुनिश्चित की जा सके। 2009 में फेसबुक और व्हाट्सएप भारत के सिर्फ 20 प्रमुख शहरों में थे। 2014 में इसने पारंपरिक मीडिया को पीछे छोड़ दिया। 2019 में देश में यह सबसे अधिक दखलंदाजी वाली मीडिया साबित होगी।’

बोरा भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ की तुलना स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी से करते हैं। इसकी आंतकी गतिविधियां की वजह से सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर रखा है। बोरा कहते हैं, ‘20 बड़े शहरों के लोगों में सोशल मीडिया की सामग्री को लेकर संदेह पैदा हो रहा है। वे व्हाट्सएप की चीजों पर अब आंखें मूंदकर भरोसा नहीं कर रहे हैं।’ राजनाथ सिंह की जगह जब नितिन गडकरी अध्यक्ष बने तो बोरा ने आईटी प्रकोष्ठ छोड़ दिया और असम में भाजपा के लिए काम करने लगे।